एक दर्द से छुटकारा पाना है तो दूसरे दर्द को गले लगा लो, ऐसा लोग कहते हैं।।
VISHWAS
Saturday, April 7, 2012
Sunday, March 25, 2012
महत्वपूर्ण बनने की होड़ में पिसता लोकपाल
अन्ना हजारे जी ने देश के लिए जो किया, उसके लिए उन्हें कोटिशः धन्यवाद। अपने अथक परिश्रम, प्रयास और जनता के सहयोग से जिस सख्स ने हिंदुस्तान के हर नागरिक के हाथ में एक ऐसा ब्रह्मास्त्र दिया, जो स्वर्ग में भी सिर्फ इन्द्र के पास था। उस ब्रह्मास्त्र का नाम है आर.टी.आई.। और रामबाण (जनलोकपाल बिल ) के लिए अन्ना जी का आन्दोलन जारी है। घोर आलोचना और विरोध के बावजूद मौजूदा सरकार अन्ना के जन लोकपाल से सहमत नहीं हो पाई, क्योकि अगर सरकार जनलोकपाल मुद्दे पर अन्ना की बात मान लेती तो मीडियाबाजी होने लगती कि सरकार ने फिर अन्ना के आगे घुटने टेके, झुक गई आदि-आदि। और जनलोकपाल के पारित हो जाने के बावजूद सरकार के उच्च पदों पर बैठे लोगों की महत्ता घट जाती और अन्ना की चारो तरफ जय-जेकर होने लगती। और पहले से ही कांग्रेश के सर्वाधिक महत्वपूर्ण पदों पर आसीन व्यक्ति ऐसी आलोचना को अपने आत्मसम्मान के खिलाफ मानते, और कत्तई इस बात को बर्दास्त करने की स्थिति में नहीं होते कि वे अन्ना हजारे से कम महत्वपूर्ण हैं।
और दुनिया में कोई भी इंसान चाहे वह सोनिया गाँधी ही क्यों न हो अपने महत्वपूर्णता को खोना नहीं चाहता, और आलोचना से तो बिलकुल नहीं।
सिगमंड फ्रायड ने कहा था कि - किसी भी काम को करने के पीछे मनुष्य की दो मूलभूत आकांक्षाएं होती हैं - सेक्स की आकांक्षा और महान बनने की आकांक्षा।
एक बार की बात है। होरेस ग्रीले सिविल वर के दौरान अमेरिका के सर्वाधिक प्रसिद्ध संपादक थे। वे लिंकन की नीतियों से बुरी तरह असहमत थे। उनका विस्वास था कि वे बहस, उपहास, और अपमान का अभियान चलाकर लिंकन को अपने पक्ष में सहमत कर लेंगे। उनका यह कटु अभियान महीने दर महीने, साल दर साल चला। दरअसल उन्होंने उस रात को भी लिंकन पर एक क्रूर, कटु, आलोचनात्मक और व्यक्तिगत आघात पहुचाने वाला सम्पादकीय लिखा था, जिस रात को बूथ ने लिंकन पर गोलिया चलाई थी।
परन्तु क्या इतनी कटुता के बाद भी लिंकन, ग्रीले से सहमत हुवे ? कत्तई नहीं। आलोचना, उपहास और अपमान कभी किसी को सहमत नहीं करा सकते।
कुछ ऐसी ही कहानी अपने प्रधानमंत्री जी की भी लगती है, जिन्हें काफी समय से कमजोर प्रधानमंत्री का तमगा मिला हुआ है, और वो इस से नाराज होंगे, इसलिए लोकसभा में इतना कमजोर बिल पेश करवाया जिससे, विपक्ष इसका विरोध करे और यह पारित ही न हो पाए।
अतः अन्ना और सरकार के बीच महत्वपूर्ण बनने की होड़ में जनलोकपाल बिल पिस रहा है, जिसे सरकार और अन्ना के परस्पर सहमती से ही अमल में लाया जा सकता है।।
और दुनिया में कोई भी इंसान चाहे वह सोनिया गाँधी ही क्यों न हो अपने महत्वपूर्णता को खोना नहीं चाहता, और आलोचना से तो बिलकुल नहीं।
सिगमंड फ्रायड ने कहा था कि - किसी भी काम को करने के पीछे मनुष्य की दो मूलभूत आकांक्षाएं होती हैं - सेक्स की आकांक्षा और महान बनने की आकांक्षा।
एक बार की बात है। होरेस ग्रीले सिविल वर के दौरान अमेरिका के सर्वाधिक प्रसिद्ध संपादक थे। वे लिंकन की नीतियों से बुरी तरह असहमत थे। उनका विस्वास था कि वे बहस, उपहास, और अपमान का अभियान चलाकर लिंकन को अपने पक्ष में सहमत कर लेंगे। उनका यह कटु अभियान महीने दर महीने, साल दर साल चला। दरअसल उन्होंने उस रात को भी लिंकन पर एक क्रूर, कटु, आलोचनात्मक और व्यक्तिगत आघात पहुचाने वाला सम्पादकीय लिखा था, जिस रात को बूथ ने लिंकन पर गोलिया चलाई थी।
परन्तु क्या इतनी कटुता के बाद भी लिंकन, ग्रीले से सहमत हुवे ? कत्तई नहीं। आलोचना, उपहास और अपमान कभी किसी को सहमत नहीं करा सकते।
कुछ ऐसी ही कहानी अपने प्रधानमंत्री जी की भी लगती है, जिन्हें काफी समय से कमजोर प्रधानमंत्री का तमगा मिला हुआ है, और वो इस से नाराज होंगे, इसलिए लोकसभा में इतना कमजोर बिल पेश करवाया जिससे, विपक्ष इसका विरोध करे और यह पारित ही न हो पाए।
अतः अन्ना और सरकार के बीच महत्वपूर्ण बनने की होड़ में जनलोकपाल बिल पिस रहा है, जिसे सरकार और अन्ना के परस्पर सहमती से ही अमल में लाया जा सकता है।।
Wednesday, May 25, 2011
दो साल हुवे जो संप्रग के, बस कथा है भ्रस्टाचार की
आम जनो के हार की, नोटों के व्यापार की
गठबंधन के विस्तार की,राजा और कलमाड़ी के उद्धार की
राहुल के रोड शो के भरमार की
इन सब में खास रही जो बात
मनमोहन सिंह के धैर्य में वृद्धि के संचार की
माया, मोदी,अन्ना और बाबा से तकरार की
तेल,शराब,कनस्टर में, अरहर की दाल और शक्कर में
हर पहलू पर मिली, सिर्फ और सिर्फ हार की
दो साल हुवे जो संप्रग के, बस कथा है भ्रस्ताचार की
आम जानो के हार की, नोटों के व्यापर की
सर्वेश मिश्र
Saturday, May 21, 2011
भूमि अधिग्रहण निति
दुनिया की १२% और भारत की ७० % जनसँख्या भारत के गावों में निवास करती है| जिनमे से ५०% से ज्यादा कृषि पर आश्रित होते है| कितना ही महत्वपूर्ण विकाश क्यों न हो उपजाऊ भूमि का अधिग्रहण होना ही नहीं चाहिए और यदि हो तो उसके बदले उन्हें वैसी ही उपजाऊ भूमि दूसरी जगह उपलब्ध कराना सरकार की जिम्मेदारी है न की मुआवजा देकर अपना पिंड छुड़ाना| भारत में किसानों को अन्नदाता की संग्या दी जाती है, और जैसी घटना यू. पी. में हालताज में हुई ऐसी घटना अन्नदाता के साथ तो होनी ही नहीं चाहिए|
बहायें अर्क (पसीना) खेतों में, वो भी इन्सान ही तो हैं
गरीबों का पिए जो खून, वो शैतान ही तो हैं
दिन-रात करके एक, वो देते हमें जीवन
धरती पर कृषक के रूप में भगवन ही तो हैं ||
Saturday, November 13, 2010
sangh vs congress
पिछले दिनों सुदर्शन के बयां से भरी बवाल मचा, और ठीक उसके पहिले राहुल गाँधी ने बवाल मचाया था.
हमारे देस में संविधान के अनुसार सबको अपनी बात रखने की छूट है. लेकिन इस अधिकार के चक्कर में ये महान हस्तिया आम लोगो की भावनाओ को कितना thes पहुचाते है ये तो या सिर्फ ये जाने या उपर वाला जिसे आज तक किसी ने नहीं देखा है, मगर विस्वास बहुत है अपने ३३ करोर्ड देवी देवताओ पर जो इतने तब से है जब सारे देसों को मिलाकर के भी इतनी जनसँख्या नहीं थी.खैर मेरी समझ से ये सब पब्लिक stunt है जो जरुरी है राजनीती में बने रहने के लिए और बात bijar गई तो माफ़ी मांग लेंगे और हम (indian) maaf karne में बहुत आगे hai
हमारे देस में संविधान के अनुसार सबको अपनी बात रखने की छूट है. लेकिन इस अधिकार के चक्कर में ये महान हस्तिया आम लोगो की भावनाओ को कितना thes पहुचाते है ये तो या सिर्फ ये जाने या उपर वाला जिसे आज तक किसी ने नहीं देखा है, मगर विस्वास बहुत है अपने ३३ करोर्ड देवी देवताओ पर जो इतने तब से है जब सारे देसों को मिलाकर के भी इतनी जनसँख्या नहीं थी.खैर मेरी समझ से ये सब पब्लिक stunt है जो जरुरी है राजनीती में बने रहने के लिए और बात bijar गई तो माफ़ी मांग लेंगे और हम (indian) maaf karne में बहुत आगे hai
Wednesday, September 29, 2010
VISHWAS: sadbhawana
VISHWAS: sadbhawana: "अल्लाह मेरे नब्ज में है इश्वर से है मेरा खून जात पात का भ्रम ये छूरों इसको जाओ भूल वर्ना दुनिया कहेगी देखो झुलश गए दो गुलाब के फूल"
sadbhawana
अल्लाह मेरे नब्ज में है इश्वर से है मेरा खून
जात पात का भ्रम ये छूरों इसको जाओ भूल
वर्ना दुनिया कहेगी देखो झुलश गए दो गुलाब के फूल
जात पात का भ्रम ये छूरों इसको जाओ भूल
वर्ना दुनिया कहेगी देखो झुलश गए दो गुलाब के फूल
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